प्रति, आदरणीय द्रौपदीताई मुर्मु.      महामहिम राष्ट्रपती.      प्रजासत्ताक भारत.        राष्ट्रपती भवन,दिल्ली.११०००४..        दिनांक :- २७-०५-२०२४ विषय :- तथागत बुद्ध के पंचशीलों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए! पंचशील को लागू करने से विद्यार्थियों का मस्तिष्क विचारशील और समतावादी बनेगा और यह देश नफरत के नहीं, बल्कि प्रेम के रंग में रंगेगा!

आदरणीय महामहिम,

 सविनय जयभीम,जय संविधान,जय भारत.

                 आज भारतीय समाज में जातिवाद और कट्टरता का जहर बोया जा चुका है और समाज के एक बड़े समूह में जातिवाद और छोटे बच्चों में नफरत भरी भावना पैदा करने की साजिश रची जा रही है ! हर जगह सामाजिक नफरत का माहौल बना हुआ है, ऐसे सामाजिक उत्तरदायित्व से गुमराह हो चुके समाज को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है!

       ऐसे समाज को,हमारे देश के सर्वोत्तम महान भूमिपुत्र तथागत गौतम बुद्ध द्वारा दिये गये महान पंचशील को अपने जीवन मे उतारना होगा,इसलीये भारत सरकारने पंचशील को शालेय तथा महाविद्यालयीन पाठ्यक्रम मे पंचशील को अंकित करना चाहीये,शामिल करना चाहीये!

           भारतीय समाज में कोई नैतिकता नहीं बची है,हर तरफ सामाजिक नफरत का माहौल है, इस समाज को सदाचारी और विनम्र बनाने की तत्काल आवश्यकता है। इस विचारहीन समाज को वैचारिक स्तर पर मजबूत करने, लोगों के बीच मतभेद और दूरियां मिटाने, भाईचारा पैदा करने और एकता हासिल करने का एकमात्र विकल्प बौद्ध धम्म ही है!

             महामहिम राष्ट्रपती महोदया,कट्टरता की आग मे हिंसक बन रहे समाज को अहिंसक बनाकर दुनिया में शांति और सद्भाव का माहौल बनाने के लिए बौद्ध धम्म के महान सिद्धांत,महान तत्व,महान विचारों और शिक्षाओं की आवश्यकता है। बच्चों को बचपन से ही बौद्ध धम्म की शिक्षा देनी चाहिए! बच्चों को सुशिक्षित होने के लिए संस्कार देना जरूरी है,तभी समाज संस्कारवान बनेगा।…

        इसलीये संस्कारशील समाज बनाने हेतू इन बच्चों को अपने स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में बौद्ध धम्म के महान पंचशील को पढ़ाया जाना चाहिए।संपूर्ण विश्व बौद्ध धम्म के पंचशील से प्रभावित है! बौद्ध धम्म के पांच अतिविशिष्ट वचन हैं,जिन्हें पंचशील कहा जाता है और इन्हें हर गृहस्थ इन्सान के लिए बनाया गया है।

     १ ) पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदम् समादियामी अर्थात मैं जीव हत्या से विरत (दूर) रहूँगा, ऐसा मै व्रत लेता हूँ ! 

२ ) अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदम् समादियामी अर्थात जो वस्तुएं मुझे दी नहीं गयी हैं उन्हें लेने से मैं विरत रहूँगा, चोरी नही करुंगा ऐसा व्रत लेता हूँ ! 

३ ) कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदम् समादियामी अर्थात काम (रति क्रिया) में मिथ्याचार करने से मैं विरत रहूँगा ऐसा व्रत लेता हूँ.! 

४ ) मुसावादा वेरमणी सिक्खापदम् समादियामी अर्थात झूठ बोलने से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ! और पांचवा तथा अंतिम पंचशील  

५ ) सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदम् समादियामी अर्थात मादक द्रव्यों के सेवन से मैं विरत रहूँगा,ऐसा वचन लेता हूँ । 

     बुद्ध ने यह ऐसे पांच शील दिये है जो समाज बौद्ध धम्म के पंचशील को अपने जीवन और अभ्यास में लागू करता है,वह स्वयं और दूसरों को बचाए बिना नहीं रह पाएगा ,एकदुसरे का उद्धार करेगा। मानव को पीड़ा से मुक्ति दिलाने का पहला और सर्वोत्तम कदम तथागत बुद्ध द्वारा बताया गया पंचशील ही है,इसी पंचशील की माध्यमसे सशक्त भारत बनेगा,सशक्त समाज बनेगा,प्रबुद्ध समाज बनेगा।…

        इसलीये भीम आर्मी संविधान रक्षक दल की ओरसे मै आपसे एक,”विशेष अनुरोध करता हूं की,”तथागत बुद्ध के इस महान संदेश को,पंचशील को पाठ्यक्रम मे शामिल करने की सूचना भारत सरकारसे किजिये।…

        पंचशील को लागू करने से विद्यार्थियों का मस्तिष्क विचारशील और समतावादी बनेगा और यह देश नफरत के नहीं बल्कि प्रेम के रंग में रंगेगा!

    मनःपूर्वक धन्यवाद……

     नमो बुद्धाय…

   आपका अपना भारतीय नागरिक.

             राजेश गवली…

                   भीम आर्मी.

                 संविधान रक्षक दल…

                 महाराष्ट्र राज्य मुख्यप्रवक्ता…

                       संपर्क क्र :- ९०८२८०७६३९