मकर संक्रांति मतलब बुद्ध के बुद्धत्व प्राप्ति के संक्रमण का उत्सव है| मकरसक्रांति, लोहड़ी, पोंगल यह सभी प्राचीन बौद्ध उत्सव है|

            सुर्य से संबंधित उत्तरायण और दक्षिणायन महत्वपूर्ण मार्ग है| दक्षिणायन में सुर्य नीचे जाता है, जिसे गांधार बौद्धधर्म में “मारा का जगत” समझा जाता है| इसके विपरीत, उत्तरायण मतलब उपर आकाश में बढना है, जिसे “बुद्ध का जगत” समझा जाता है| उत्तरायण में प्रवेश करना मतलब स्तुप जैसे बौद्ध आकाश में प्रवेश करना है| सुर्य मकर राशि से निकलकर बुद्ध के आकाश में उत्तरायण शुरू करता है, इसलिए बौद्ध धर्म में मकर राशि को “बुद्ध का प्रवेशद्वार” समझा जाता है और इसलिए बौद्ध स्तुपों के प्रवेशद्वार पर मकर का प्रतीक शिल्पांकित किया जाता था| सांची स्तुप के प्रवेशद्वार पर इसी तरह का “मकर प्रवेशद्वार” है|

             सांची स्तुप के प्रवेशद्वार पर “मकर तोरण” है| मकर यह “त्रिरत्न” का प्रतीक है और संक्रमण मतलब प्रवेश करना| मकर संक्रमण मतलब स्तुप पूजा करने के लिए तथा बोधि प्राप्ति के लिए प्रवेश करना है| मकर तोरण को पवित्र तोरणद्वार भी कहते हैं और हर गांव तथा स्तुप के प्रवेशद्वार को तोरण कहते हैं, क्योंकि वह बौद्ध त्रिरत्न का प्रतीक है| त्रिरत्न को अपनाने के बाद व्यक्ति बौद्ध बनता है, इसी तरह इस तोरणद्वार से स्तुप, मंदिर तथा नगर में प्रवेश करनेवाला व्यक्ति बौद्ध समझा जाता है| बाहर का क्षेत्र अराजक (अंधकारमय दुखी मारा का क्षेत्र) समझा जाता है, और तोरणद्वार से प्रवेश करने के बाद व्यक्ति उस अराजकता (Profane field) से निकलकर बुद्ध के मंगलमय खुशहाल क्षेत्र (धम्मराज्य) में आकर निर्वाण का सुख प्राप्त करता है| इसलिए हर गांव, नगर, मंदिर तथा स्तुप के प्रवेशद्वार को मकर द्वारा कहते हैं और उससे अंदर बुद्ध क्षेत्र में जाना मकरसक्रांति है|

           मकर राशि के आगे बुद्ध की मेष राशि (Aries) है| इसलिए, गांधार शिल्पों में बोधिसत्व के साथ मकर और मेष प्राणी (Lamb) बुद्धविरोधी मारा के खिलाफ युद्ध करते हुए दिखाए गए हैं| क्रिश्चन धर्म में जिजस ख्रिस्त को लैंब (Lamb) इसलिए कहते हैं क्योंकि वह बुद्ध के क्षेत्र को आगे बढानेवाला बोधिसत्व है| मकर राशि में शुरुआत कर वैशाख में बुद्ध अपना बुद्धत्व प्राप्त करते हैं| इसलिए, बुद्धत्व प्राप्ति की भुमिस्पर्श मुद्रा वैशाख पुर्णिमा को महत्वपूर्ण समझी जाती है|

         मकर संक्रांति बौद्ध उत्सव होने के कारण तिब्बत, म्यानमार जैसे सभी बौद्ध राष्ट्रों में मकर संक्रांति को “सोनम लोसार” कहा जाता है, पंजाब में लोहड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल कहते हैं और इस दिन बौद्ध लोग खुशी से उत्सव मनाते है| इतना ही नहीं, बल्कि उत्तर पुर्व भारत के थारु, मरांग, नेवार, संथाल, जैसे बौद्ध लोग मकर संक्रांति को बुद्ध उत्सव के रूप में मनाते हैं| बौद्ध महिलाएं और युवा इस दिन एकदुसरे को मिठाई देकर बौद्ध नववर्ष का स्वागत करते हैं| महाराष्ट्र में महिलाएँ हलदी कुंकुम उत्सव मनाते हैं, क्योंकि हलदी कुंकुम रंग बुद्ध के बुद्धत्व प्राप्ति का रंग है|

           इससे स्पष्ट हो जाता है कि, मकर संक्रांति वास्तव में बुद्ध से संबंधित महत्वपूर्ण बौद्ध उत्सव है|

          डॉ. प्रताप चाटसे

        बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क